दोस्तों Rath Yatra क्यों मनाया जाता है? 2023 में रथ यात्रा कब होगी? :- हमारा भारत देश अनेकों प्रकार की धार्मिक मान्यताओं से घिरा पड़ा है। हमारे देश के प्रत्येक हिंदू धर्म के लोग पूजा पाठ एवं सभी धर्मों में अपनी आस्था रखते हैं। हमारे देश में माना जाता है कि पूजा पाठ एवं धार्मिक अनुष्ठानों में अपना महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान करके आप सीधे प्रभु की सेवा जैसे कार्यों को संपन्न करते हैं।
हमारे देश में न जाने कितने राज्य हैं और न जाने कितने राज्यों में अनेकों प्रकार के धर्मों को माना जाता है और उनके प्रति आस्था भी रखी जाती है। आज हम आपको भगवान श्री कृष्ण की रथयात्रा के बारे में जानकारी देने वाले हैं।
इस लेख में आपको बहुत सारे सवाल जैसे रथ यात्रा क्यों मनाई जाती हैं? और रथ यात्रा कहाँ का महोत्सव हैं आदि के जवाब मिल जायेंगे। तो रथ यात्रा कि सम्पूर्ण जानकारी के लिए इसे अंत तक जरुर पढ़ें।
![Rath Yatra क्यों मनाया जाता है? 2023 में रथ यात्रा कब होगी?](https://tejwiki.in/wp-content/uploads/2023/06/Rath-yatra-kyon-manaya-jata-hai.jpg)
Rath Yatra क्या होता है? (What is Rath Yatra)
रथ यात्रा एक पर्व है जिसे मुख्यतः हिन्दू धर्मावलंबियों के द्वारा हर वर्ष एक बार मनाया जाता है. यह पर्व बाकी हिन्दू पर्वों से अलग माना जाता है क्योंकि बाकी हिन्दू पर्व मुख्यतः अपने घरों अथवा मंदिरों में पूजन पाठन या व्रत रखकर मनाये जाते हैं। किन यह पर्व उन सबसे अलग है क्योंकि इस पर्व को सभी लोग इकट्ठे होकर मनाते है. इस पर्व को पुरी शहर में रथ यात्रा निकालकर मनाया जाता है. इस पर्व को 10 दिनों तक मनाया जाता है।
पुरी शहर भारत के उड़ीसा राज्य में स्थित है जिसे शंख क्षेत्र, श्रीक्षेत्र, पुरूषोत्तम पुरी इत्यादि नामों से भी जाना जाता है. इस शहर के लोग प्रमुख देवता भगवान जगन्नाथ को ही मानते हैं और पुरी को भगवान जगन्नाथ जी की मुख्य लीला भूमि माना जाता है. यहां का मुख्य पर्व भी भगवान जगन्नाथ की रात यात्रा है. रथ यात्रा पर्व बड़ी ही धूम धाम के साथ मनाया जाता है. रथ यात्रा के दर्शन लाभ के लिए देश विदेश से लाखों भक्त आते हैं।
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Rath Yatra का इतिहास (History of Rath Yatra)
भगवान श्री कृष्ण के रथ यात्रा के पीछे बहुत ही पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई है। पौराणिक कथाओं में से एक कथा का वर्णन हम करने जा रहे है। एक बार गोपियों ने माता रोहिणी से भगवान श्री कृष्ण जी के रासलीला के बारे में विस्तारपूर्वक सुनना चाहती थी, वहीं पर श्री कृष्ण जी की बहन सुभद्रा भी मौजूद थी।
माता रोहिणी सुभद्रा के सामने श्री कृष्णा जी के रासलीला नहीं बताना चाहती थी, इसीलिए माता रोहिणी ने सुभद्रा जी को बाहर भेज दिया और उनसे कहा कि तुम ध्यान रखना कि कोई भी अंदर ना आ सके। सुभद्रा जी बाहर जाकर खड़ी हो गई।
कुछ ही समय बाद श्री कृष्ण और बलराम दोनों आकर सुभद्रा जी के दाई ओर और बाई ओर खड़े हो गए। तभी वहां पर देव ऋषि नारद जी आए और उन तीनों को देखकर उनके इसी प्रकार खड़े रहने पर उनके असली रूप का दर्शन करने की इच्छा प्रकट की।
इन तीनों ने (श्री कृष्ण, बलराम और सुभद्रा जी) देव ऋषि नारद जी के इस इच्छा को पूर्ण किया। तभी से इन लोगों की इसी रूप में रथ यात्रा निकाली जाती है।
Rath Yatra कब मनाया जाता है? (When is Rath Yatra celebrated)
रथ यात्रा आषाढ़ शुक्ल की द्वितीया को जगन्नाथपुरी में प्रारम्भ होती है. इस वर्ष रथ यात्रा 20th June को मनाया जाने वाला है। यह रथयात्रा 10 दिनों की होती है। मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ आषाढ़ शुक्ल की द्वितीया से दशमी तक लोगों के बीच रहते हैं. रथ यात्रा का उत्सव सैंकड़ों वर्षों से लगातार मनाया जाने वाला पर्व है।
हर वर्ष रथ यात्रा में शामिल होने के लिए लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं. रथ यात्रा में शामिल होने वाले श्रद्धालुओं की संख्या साल दर साल बढ़ती जा रही है। भगवान जगन्नाथ जी को भगवान श्रीकृष्ण और राधा की युगल मूर्ति का रूप माना जाता है. रथ यात्रा की तैयारी हर वर्ष बसंत पंचमी से ही शुरू कर दी जाती है. भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा के लिए नीम के चुनिंदा पेड़ की लकड़ियों से रथ तैयार किया जाता है।
रथ की लकड़ी के लिए अच्छे और शुभ पेड़ की पहचान की जाती है जिसमे कील आदि न ठुके हों और रथ के निर्माण में किसी प्रकार की धातु का उपयोग नहीं किया जाता है।
Rath Yatra क्यों मनाया जाता है? (Why is Rath Yatra celebrated)
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का पर्व हर वर्ष मनाया जाता है. इस पर्व को मनाने के पीछे कुछ मान्यताएं है. जिसमें से सर्वप्रचिलित मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा नें भगवान जगन्नाथ जी से द्वारका दर्शन करने की इच्छा जाहिर की जिसके फलस्वरूप भगवान ने सुभद्रा को रथ से भ्रमण करवाया तब से हर वर्ष इसी दिन जगन्नाथ यात्रा निकाली जाती है।
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के लिए तीन रथ तैयार किये जाते हैं. रथ यात्रा में सबसे आगे श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का रथ रहता है जिसमें 14 पहिये रहते हैं और इसे तालध्वज कहते हैं, दूसरा रथ 16 पहिये वाला श्रीकृष्ण का रहता है जिसे नंदीघोष या गरूणध्वज नाम से जाना जाता है और तीसरा रथ श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा का रहता है जिसमें 12 पहिये रहते हैं और इसे दर्पदलन या पद्मरथ कहा जाता है।
तीनों रथों को उनके रंग और लंबाई से पहचाना जाता है।
2023 में रथ यात्रा कब होगी? (When will the Rath Yatra take place in 2023)
रथ यात्रा का बहुत ही बेसब्री से सभी को इंतजार रहता है भगवान जगन्नाथ के स्मरण में निकाले जाने वाली जगन्नाथ रथ यात्रा का हिंदू धर्म में बड़ा ही पावन महत्व है पुरी उड़ीसा में इस रथयात्रा का विशाल आयोजन किया जाता है हिंदू पंचांग के अनुसार पुरी रथ यात्रा हर साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष के द्वितीय तिथि को निकाली जाती है। 2023 में रथ यात्रा 20 जून (मंगलवार) को आयोजित की जाएगी।
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा वर्ष व दिनांक (Year & Date)
निचे सरणी में अगले 5 साल के रथ यात्रा का वर्ष और दिनांक (Year & Date) देख सकते है –
वर्ष | दिन और दिनांक |
2021 | सोमवार, 12 जुलाई |
2022 | शुक्रवार, 1 जुलाई |
2023 | मंगलवार, 20 जून |
2024 | सोमवार, 8 जुलाई |
2025 | शुक्रवार, 27 जून |
2026 | गुरुवार, 16 जुलाई |
Rath Yatra की पूरी कहानी (Full story of Rath Yatra)
रथ यात्रा के पीछे एक पुरानी कहानी प्रचिलित है की ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ का जन्म हुआ था. उस दिन भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा को रत्नसिंहासन से उतार कर भगवान जगन्नाथ के मंदिर के पास बने स्नान मंडप में ले जाया जाता है।
फिर 108 कलशों से उनका शाही स्नान होता है जिससे भगवान जगन्नाथ बीमार पड़ जाते हैं और उन्हें बुखार आ जाता है. इसके बाद भगवान जगन्नाथ को एक विशेष स्थान में रखा जाता है जिसे ओसर घर कहते हैं।
15 दिन बाद भगवान जगन्नाथ स्वस्थ होकर घर से निकलते हैं और भक्तों को दर्शन देते हैं. इसे नवयौवन नेत्र उत्सव भी कहते हैं. इसके बाद आषाढ़ शुक्ल की द्वितीया को भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ रथ में सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं।
Rath Yatra कैसे मनाया जाता है? (How is Rath Yatra celebrated)
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के लिए तीन रथ तैयार किये जाते हैं. जब तीनों रथ तैयार हो जाते हैं तब ‘छर पहनरा’ अनुष्ठान किया जाता है. इन तीनों रथों की पूजा करके सोने की झाड़ू से रथ और रास्ते को साफ किया जाता है. आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को रथ यात्रा का आरंभ होता है. ढोल नगाड़ों के साथ ये यात्रा निकाली जाती है और भक्तगण रथ को खींचकर पुन्य लाभ अर्जित करते हैं।
रथ यात्रा जगन्नाथ मंदिर से शुरू होती है और पुरी शहर से होते हुए नगर भ्रमण कर गुंडीचा मंदिर पहुंचती है. 10वे दिन रथ पुनः मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं. 11वे दिन मंदिर के द्वार खोले जाते हैं. इस दिन भक्तगण स्नान कर भगवान के दर्शन करते हैं।
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Rath Yatra का विशेष महत्व (Special importance of Rath Yatra)
पुरी स्थित वर्तमान मंदिर 800 वर्षों से भी पुराना है जिसे चार पवित्र धामों में से एक माना गया है. कहा जाता है कि जिन भक्तों को रथ यात्रा का रथ खींचने का सौभाग्य मिलता है वो बहुत भाग्यवान माने जाते हैं. पौराणिक मान्यता के अनुसार रथ खींचने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
ऐंसी मान्यता है कि इस दिन भगवान स्वयं नगर भ्रमण कर लोगों के बीच आते हैं और उनके सुख दुख में सहभागी बनते हैं. Rath Yatra क्यों मनाया ऐंसा भी माना जाता है कि जो भक्त रथयात्रा में भगवान के दर्शन करते हुए एवं प्रणाम करते हुए रास्ते की धूल कीचड़ आदि में लोट लोट कर जाते हैं उन्हें श्री विष्णु के उत्तम धाम की प्राप्ति होती है।
सबसे खास बात यह है कि रथ यात्रा के दिन कोई भी मंदिर एवं घर में पूजा न कर सामूहिक रूप से इस पर्व को सम्पन्न करते हैं और इसमें किसी प्रकार का भेदभाव नहीं देखा जाता है।
FAQ:- रथ यात्रा से सम्बंधित कुछ सवाल जवाब :-
रथ यात्रा कहां का प्रसिद्ध त्योहार है ?
रथ यात्रा उड़ीसा राज्य के जगन्नाथपुरी का प्रसिद्ध त्योहार है जिसे बड़े ही धूम – धाम से मनाया जाता है।
भगवान जगन्नाथ के रथ का क्या नाम है ?
भगवान जगन्नाथ के रथ का नाम “नंदिघोष” है जिसे गरुड़ध्वज भी कहा जाता है।
जगन्नाथपुरी में कौन से भगवान है ?
जगन्नाथपुरी में भगवान जगन्नाथ जी विराजमान है।
जगन्नाथ में किसकी मूर्ति है ?
जगन्नाथ में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा जी की मूर्ति है।
श्री कृष्ण की मौसी कौन थी ?
जगन्नाथ में स्थित गुंडीचा मंदिर की देवी, श्रीकृष्ण जी की मौसी हैं।
सुभद्रा देवी के रथ का नाम क्या है ?
सुभद्रा देवी के रथ का नाम “दर्पदलन” है।
बलभद्र या बलराम जी के रथ का नाम क्या है ?
बलभद्र या बलराम जी के रथ का नाम “तालध्वज” है।
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